नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने शुक्रवार को इजराइल-लेबनान सीमा पर बिगड़ती स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ‘संयुक्त राष्ट्र परिसर का सभी को सम्मान करना चाहिए’। भारत सरकार का यह बयान उन रिपोर्टों के बाद आया है जिसमें कहा गया कि दक्षिणी लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के अड्डे पर कथित तौर पर इजरायली बलों की गोलीबारी के बाद कुछ लोग घायल हो गए थे।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘हम ब्लू लाइन पर बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के बारे में चिंतित हैं। हम स्थिति की बारीकी से निगरानी करना जारी रखे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र परिसर का सभी को सम्मान करना चाहिए, और संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जाने चाहिए।’
गौरतलब है कि ‘लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (UNIFIL)’ ने लेबनान और इजराइल के बीच की सीमा ‘ब्लू लाइन’ पर अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है। संयुक्त राष्ट्र के एक सूत्र ने टाइम्स ऑफ इजराइल को बताया कि ‘इजरायली बलों ने आज (शुक्रवार) सुबह दक्षिणी लेबनान के नकौरा में UNIFIL शांति सेना के मुख्य अड्डे पर एक निगरानी चौकी पर गोलीबारी की, जिसमें दो लोग घायल हो गए।
भारत की चिंता क्यों बढ़ गई है?
भारत ने कहा है कि वह दक्षिणी लेबनान की स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है। भारत की चिंता इसलिए भी है क्योंकि यहां लगभग 900 भारतीय सैनिक लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (यूएनआईएफआईएल) के हिस्से के रूप में तैनात हैं।
कुल मिलाकर भारत ने वर्तमान में दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न शांति अभियानों में 5,934 सैनिक तैनात किए हुए हैं। पिछले कुछ दशकों में संयुक्त राष्ट्र के अभियानों में भारत ने 159 सैनिक खोए हैं, जिनमें UNIFIL में छह और UNDOF में दो शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने 2006 में इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच एक महीने से चल रहे युद्ध को समाप्त करने और इजराइल-लेबनान सीमा पर सुरक्षा में सुधार के लिए प्रस्ताव 1701 पारित किया था। हालांकि लगभग दो दशकों की शांति के बावजूद प्रस्ताव के सभी शर्तों को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।
इस प्रस्ताव का उद्देश्य इजराइली सेनाओं को वापस बुलाना था। साथ ही लेबनान की लितानी नदी के दक्षिण में एकमात्र सशस्त्र सेना के तौर पर लेबनानी सेना और संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक जिन्हें UNIFIL के नाम से जाना जाता है, इन्हें स्थापित करना था।
प्रस्ताव का कितना महत्व रह गया है?
इजराइल और लेबनान सीमा पर उल्लंघन की खबरें लगातार आती रही हैं। इजराइल अक्सर हिजबुल्लाह पर वहां अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखने और उसके सैनिकों की जासूसी करने के लिए एक स्थानीय पर्यावरण संगठन का इस्तेमाल करने का आरोप लगाता रहा है। लेबनान भी इजराइली जेट और नौसैनिक जहाजों के घुसपैठ की शिकायत करता रहा है।
अस्थायी युद्धविराम के प्रयास के तहत प्रस्ताव-1701 को अभी भी महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि, 2006 के बाद से क्षेत्रीय संघर्षों में हिज्बुल्लाह की भागीदारी और इसकी सैन्य क्षमताओं में लगातार तेजी से वृद्धि के कारण स्थिति और अधिक जटिल हो गई है।