नई दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार से कांग्रेस की मुश्किलों का अंत नहीं होने जा रहा है। पार्टी के लिए दरअसल चुनौतियां और बढ़ने का अंदेशा बढ़ गया है। खासकर महाराष्ट्र और झारखंड में, जहां कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव संभव है। इसके अलावा माना जा रहा है कि हरियाणा में कमजोर प्रदर्शन के कारण अब कांग्रेस को यूपी उपचुनाव में सपा के सामने गठबंधन को बचाने के लिए भी झुकना पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मुश्किल
राजनीतिक जानकारों के अनुसार मध्य प्रदेश के बाद हरियाणा में भी कांग्रेस ने सपा को एक भी सीट नहीं दी। इसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी को उस चुनाव से अलग कर लिया था। इसके बाद यूपी उपचुनाव में सीट बंटवारे पर चर्चा बंद हो गई और दोनों दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दीं। सपा ने पहले से ही 10 सीटों की तैयारी कर ली है, जबकि कांग्रेस भी उन सीटों पर चुनाव की योजनाएं बना चुकी है, जहां उपचुनाव होने हैं।
अगर हरियाणा में कांग्रेस को मनचाहा परिणाम मिलता, तो सपा से बातचीत फिर से शुरू हो सकती थी, लेकिन अब यह मुश्किल हो गया है। चाहे मध्य प्रदेश हो या हरियाणा, कांग्रेस ने दोनों राज्यों में इंडिया गठबंधन के तहत सपा को कोई सीट नहीं दी। इससे सपा को अपने कदम वापस खींचने पड़े। यूपी में सपा मजबूत है और वह अपने हिसाब से निर्णय लेगी। अब सपा पहले परिस्थितियों को परखेगी, फिर कोई फैसला लेगी।
सपा की ओर से इस संबंध में इशारे भी दिए जाने लगे हैं। सपा के प्रवक्ता डॉ. आशुतोष वर्मा ने कहा, “यह साबित हो गया है कि क्षेत्रीय दलों के बिना कांग्रेस भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है। कांग्रेस ने हरियाणा में सपा का कोई जनाधार नहीं बता कर अनदेखी की। फिर सपा मुखिया ने बड़ा दिल दिखाया और हरियाणा में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। महाराष्ट्र में हमारा संगठन है और हमारे विधायक भी हैं, लेकिन कांग्रेस यूपी के उपचुनाव में पांच सीटें मांग रही है। इसका मतलब यह है कि वह गठबंधन को आगे नहीं ले जाना चाहती। उनके प्रदेश अध्यक्ष 10 सीटें लड़ने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उनके पास संगठन कहां है? 2022 के चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं, सपा वहां कई सीटों पर पहले नंबर पर थी, जबकि कांग्रेस चौथे या पांचवें स्थान पर रही थी।’
वर्मा ने आगे कहा, ‘अगर हर बार बड़ा दिल सपा प्रमुख अखिलेश यादव ही दिखाएंगे, तो कांग्रेस कब दिखाएगी?’
महाराष्ट्र में भी मिलेगी चुनौती
समाचार एजेंसी IANS के अनुसार वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस ने कहा, ‘हरियाणा में प्रदर्शन के बाद यूपी के उपचुनाव में कांग्रेस को जो मिले, वह सही है, लेकिन ज्यादातर सीटों पर वे कमजोर स्थिति में हैं। कांग्रेस अब बारगेनिंग की स्थिति में नहीं है और इसका असर 2027 तक रह सकता है। कांग्रेस को महाराष्ट्र में भी सपा को अपने कोटे की सीटें देनी होंगी, क्योंकि उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपने हिस्से की सीटें सपा को नहीं देंगे।’
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली 99 सीटों के बाद उसका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ था। विपक्ष पार्टियों के बीच भी कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आ रहा था। हालांकि, हरियाणा के नतीजे समीकरण निश्चित तौर पर बदलेंगे।
यूपी के अलावा महाराष्ट्र से भी इसका संकेत मिला जब शिवसेना यूबीटी की प्रियंका चतुर्वेदी ने वोटों की गिनती के दिन आ रहे रुझानों के बीच ही अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि था, ‘एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद भाजपा जीत रही है। कहीं न कहीं यह दिखाता है कि कांग्रेस को अपनी लड़ाई की योजनाओं पर दोबारा गौर करना होगा, अपने अंदर झांकना होगा और इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब भी बीजेपी से सीधी लड़ाई होती है तो कांग्रेस कमजोर होती नजर आती है। उसे पूरे गठबंधन पर फिर से काम करना होगा।’
महाराष्ट्र में चुनाव इसी साल के आखिर में हो सकते हैं। यहां कांग्रेस उद्धव ठाकरे ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन में है। अति आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस अभी तक सीट-बंटवारे और ठाकरे सीएम चेहरा बनाने की शिवसेना की मांग को लेकर बहुत धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी। हरियाणा के नतीजों से कांग्रेस को कुछ बेहतर डील की उम्मीद थी पर अब तस्वीर बदल गई है।
दिल्ली से ‘आप’ का तंज…झारखंड पर भी नजर
हरियाणा चुनाव में आखिर तक आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के गठबंधन की कोशिशों की खबरें आती रही। यह साफ दिख रहा था कि ‘आप’ इस गठबंधन को फाइनल चाहती थी लेकिन कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं के अड़ियल रवैये ने इसे अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया। हरियाणा के नतीजों के बाद अब आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस पर तंज कस रही है। दिल्ली में अगले साल चुनाव है।
हरियाणा के नतीजों मंगलवार को ‘आप’ नगर निगम पार्षदों को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा, ‘देखते हैं कि हरियाणा में नतीजे क्या आते हैं। इसका (चुनाव नतीजों) सबसे बड़ा सबक यह है कि चुनाव में कभी भी अति आत्मविश्वास नहीं होना चाहिए।’ जाहिर तौर पर इशारा कांग्रेस की ओर ही था।
झारखंड से झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन की ओर से कोई बयान नहीं आया है। हालांकि, हरियाणा के नतीजे निश्चित रूप से राज्य में उसके सहयोगी कांग्रेस के साथ गठबंधन और सीट शेयरिंग पर असर डाल सकते हैं।
(समाचार एजेंसी IANS के इनपुट के साथ)