पोर्ट लुइस: ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच लंबे समय से ‘चागोस द्वीप समूह’ को लेकर चला आ रहा विवाद समाप्त हो गया है। युनाइडेट किंगडम और मॉरिशस के बीच गुरुवार को ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसके बाद पोर्ट लुइस अब चागोस द्वीप पर नियंत्रण हासिल कर लेगा।
हालांकि, समझौते के तहत ब्रिटेन और अमेरिका के सैन्य बेस अभी डिएगो गार्सिया में बने रहेंगे। डिएगो गार्सिया दरअसल चागोस द्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है। हिंद महासागर में स्थित यह पूरा क्षेत्र रणनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है। मॉरीशस लगातार चागोस द्वीप समूह पर अपने नियंत्रण की बात कहता रहा है। भारत ने भी मॉरीशन के इस दावे का हमेशा समर्थन किया था।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने कहा कि इस समझौते ने अफ्रीका में ब्रिटेन के अंतिम विदेशी क्षेत्र की संप्रभुता पर विवाद का निपटारा कर दिया। साथ ही ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से संचालित डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डे के भविष्य को भी सुरक्षित कर दिया।
क्या है चागोस द्वीप समूह?
चागोस द्वीपसमूह में 58 द्वीप शामिल हैं। यह पूरा क्षेत्र हिंद महासागर में मालदीव द्वीपसमूह के दक्षिण में लगभग 500 किमी दूर स्थित है। इन द्वीप पर 18वीं शताब्दी के अंत तक इंसानी बस्ती नहीं थी। बाद में फ्रांसीसी यहां नए लगाए गए नारियल के बागानों में काम करने के लिए अफ्रीका और भारत से श्रमिकों को लाए थे। साल 1814 में फ्रांस ने इन द्वीपों को ब्रिटेन को सौंप दिया।
इसके बाद साल 1965 में युनाइटेड किंगडम ने ‘ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (BIOT)’ का गठन किया, जिसमें चागोस द्वीप समूह केंद्रीय हिस्सा था। मॉरीशस पर तब ब्रिटिश शासन था। ब्रिटेन ने इस दौरान हिंद महासागर में अपने प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए चागोस को मॉरीशस से जोड़े रखा था।
साल 1968 में मॉरीशस को आजादी मिली लेकिन चागोस द्वीप समूह पर ब्रिटेन ने अपना कब्जा बनाए रखा। ब्रिटेन सरकार ने मॉरीशस को आजादी देते हुए चागोस द्वीपसमूह से अलग करने के लिए 30 लाख पाउंड भी दिए।
डिएगो गार्सिया क्या है?
चागोस द्वीप समूह पर नियंत्रण रखते हुए ब्रिटेन ने 1966 में अमेरिका के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार दोनों देशों की सेना डिएगो गार्सिया में अपना सैन्य बेस बना सकती थी। चागोस द्वीप समूह में डिएगो गार्सिया सबसे बड़ा द्वीप है। अमेरिका के साथ समझौते के कुछ साल बाद डिएगो गार्सिया में प्लांटेशन का काम बंद कर दिया गया।
इसके बाद यहां का ब्रिटिश प्रशासन (BIOT) एक नया नियम लेकर आया। इसके अनुसार किसी व्यक्ति के लिए डिएगो गार्सिया में बिना परमिट के प्रवेश करना या रहना गैरकानूनी बना दिया। साथ ही जो लोग द्वीप पर रह रहे थे उनमें से भी कई लोगों को हटाने का काम शुरू किया गया। इस दौरान करीब 2,000 नागरिकों को बाहर निकाल दिया गया। यह मुद्दा भी ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच विवाद का केंद्र रहा।
बहरहाल, 1986 में डिएगो गार्सिया पूरी तरह से सैन्य अड्डा बन गया। यह सैन्य अड्डा अमेरिका के लिए इस क्षेत्र में बेहद अहम भूमिका निभाता है। खाड़ी युद्ध से लेकर इराक और अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध में भी अमेरिका ने अपने इस बेस का बखूबी इस्तेमाल किया। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने 9/11 की घटना के बाद इस जगह का इस्तेमाल डिटेंशन सेंटर के तौर पर भी खूब किया है।
मॉरीशस क्यों चागोस द्वीप पर करता रहा है दावा?
मॉरीशस लंबे समय से दावा करता रहा है कि ब्रिटेन ने चागोस पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है। मॉरीशस ने इस मामले को कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया। साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) से चागोस द्वीपसमूह की कानूनी स्थिति की जांच करने के लिए मतदान किया।
इसके करीब दो साल बाद यूएनजीए ने आईसीजे की एक सलाह का स्वागत करते हुए एक प्रस्ताव पास किया जिसमें मांग की गई थी कि यूनाइटेड किंगडम ‘छह महीने के भीतर अपने औपनिवेशिक प्रशासन को क्षेत्र से बिना शर्त वापस ले ले।’
तत्कालीन आईसीजे प्रेसिडेंट अब्दुलकावी अहमद यूसुफ ने कहा था कि 1965 में मॉरीशस से चागोस द्वीपसमूह को अलग करना ‘संबंधित लोगों की स्वतंत्र और वास्तविक अभिव्यक्ति’ पर आधारित नहीं था।
99 साल तक बनी रहेगी ब्रिटेन-अमेरिका की सेना
समझौते के बाद मॉरीशस और ब्रिटेन की ओर से संयुक्त बयान के अनुसार प्रस्तावित संधि की शर्तों के तहत ब्रिटेन इस बात पर सहमत होगा कि डिएगो गार्सिया सहित चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस का संप्रभु अधिकार है। हालाँकि, मॉरीशस और यूके दोनों इस संधि के तहत अपनी सहमति देंगे कि डिएगो गार्सिया में 99 सालों की प्रारंभिक अवधि के लिए सैन्य अड्डे का संचालन जारी रहेगा, क्योंकि यह ‘क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’
इस संधि के बाद मॉरीशस अब चागोस द्वीप के उन लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू कर सकता है, जिन्हें वहां से स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया गया था। हालांकि, इन्हें डिएगो गार्सिया वापस जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यूके भी एक ट्रस्ट फंड बनाकर इस प्रक्रिया में मॉरीशस की मदद करेगा।
भारत ने क्या कहा?
ब्रिटेन उपनिवेश रहे भारत ने हमेशा से चागोस द्वीप समूह पर मॉरीशस के दावों को खुलकर समर्थन दिया है। भारत ने 2019 में संयुक्त राष्ट्र में मॉरीशस के पक्ष में मतदान किया। हाल के वर्षों में हिंद महासागर में चीन की लगातार बढ़ती आक्रमकता के बीच भारत ने मॉरीशस के साथ अपने संबंधों को भी और मजबूत करने का प्रयास किया है।
सूत्रों के अनुसार चागोस विवाद को खत्म करने में भारत ने भी पर्दे के पीछे से बड़ी भूमिका निभाई है। मॉरीशन और ब्रिटेन के संयुक्त बयान में भी भारत का जिक्र किया गया है। बयान में कहा गया, ‘आज के राजनीतिक समझौते तक पहुंचने में, हमें अपने करीबी सहयोगियों संयुक्त राज्य अमेरिका और भारतीय गणराज्य का पूरा समर्थन और सहायता मिली है।’
बहरहाल, नई दिल्ली की ओर से समझौते का स्वागत करते हुए कहा गया, ‘भारत ने चागोस पर संप्रभुता के लिए मॉरीशस के दावे का लगातार समर्थन किया है। यह भारत के अन्य राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन और साथ ही साथ मॉरीशस के साथ उसकी दीर्घकालिक और करीबी साझेदारी पर अपने सैद्धांतिक रुख के अनुसार है।’