गोरखपुर एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर (ईडी) गोपाल कृष्ण पाल को बेटे और बेटी को फर्जी ओबीसी सर्टिफिकेट बनावकर दाखिला दिलवाने के आरोप में पद से हटा दिया गया है। एम्स गोरखपुर के सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. गौरव गुप्ता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है, जिसमें डॉ. पाल पर अपने बेटे और बेटी के लिए फर्जी ओबीसी सर्टिफिकेट बनवाने और आरक्षित कोटे के तहत प्रवेश लेने का आरोप लगाया गया है। डॉ. पाल की जगह एम्स भोपाल के प्रोफेसर अजय सिंह को कार्यकारी निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
269 दिनों में दो निदेशक पद से हटाए गए
बता दें कि पिछले 269 दिनों में संस्थान के दो निदेशक पद से हटाए जा चुके हैं। इससे पहले ऋषिकेश एम्स की प्रोफेसर सुरेखा किशोर, जून 2020 में गोरखपुर एम्स की कार्यकारी निदेशक नियुक्त हुई थीं। उनके कार्यकाल के दौरान छात्रों ने कई बार प्रदर्शन किया और कैंट थाना से लेकर डीएम आवास तक पहुंच गए।
किसी तरह इस मामले को सुलझाया गया लेकिन शिकायतों का दौर शुरू हो गया। इस बीच कोरोना संक्रमण काल में शिकायतें कम हुईं लेकिन बाद में डाक्टरों में गुटबाजी शुरू होने लगी। इसका असर रोगियों से जुड़ी सुविधाओं को शुरू कराने पर पड़ा।
पिछले साल सुरेखा पर अपने दोनों बेटों, डॉ. शिखर किशोर वर्मा और डॉ. शिवल किशोर वर्मा, को एम्स में नियुक्त कराने का आरोप लगा, जिसके बाद उनकी शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग तक पहुंची। इस मुद्दे ने तूल पकड़ा तो जनवरी 2024 में प्रो. सुरेखा को उनके पद से हटा दिया गया, जबकि उनका कार्यकाल पूरा होने में डेढ़ साल बचे थे।
सुरेखा के जाने के बाद जनवरी 2024 में एम्स पटना के निदेशक प्रो. गोपाल कृष्ण पाल को छह महीने के लिए गोरखपुर एम्स का कार्यवाहक निदेशक बनाया गया। जुलाई में उनका कार्यकाल तीन महीने के लिए और बढ़ाया गया, लेकिन अक्टूबर में कार्यकाल पूरा होने से छह दिन पहले ही उन्हें भी फर्जीवाड़े के आरोप में पद से हटा दिया गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने तुरंत कार्रवाई करते हुए प्रो. पाल को पद से हटाने का आदेश जारी किया और कुछ ही घंटों में नए निदेशक, प्रो. अजय सिंह, ने बिना गोरखपुर आए कार्यभार संभाल लिया। माना जा रहा है कि इस त्वरित बदलाव का उद्देश्य जांच को निष्पक्ष बनाए रखना है।
गोपाल कृष्ण ने 80 लाख के आय को 8 लाख दिखाया
शिकायत के अनुसार, डॉ. पाल सामान्य वर्ग (ठाकुर) से आते हैं। लेकिन अपने बच्चों के ओबीसी (नॉन-क्रीमी लेयर) प्रमाण पत्र के साथ छेड़छाड़ की और परिवार की वार्षिक आय को 8 लाख रुपए दिखाया जबकि उनकी वास्तविक आय 80-90 लाख रुपए है। डॉ. गुप्ता ने डॉ. पाल, उनकी पत्नी प्रभाति पाल और उनके बेटे ओरो प्रकाश पाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।
यह घोटाला तब सामने आया जब पता चला कि डॉ. पाल ने अपने बेटे ओरो प्रकाश पाल को एम्स गोरखपुर के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में एमडी-पीजी कोर्स में अप्रैल 2024 में फर्जी ओबीसी प्रमाण पत्र के जरिए प्रवेश दिलाया। साथ ही, उनकी बेटी को एम्स पटना के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग में सीनियर रेजिडेंट के रूप में नियुक्त करवाया गया। इन फर्जी प्रमाण पत्रों में परिवार की वार्षिक आय ₹8 लाख से कम दिखाई गई, जो ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर के लाभ के लिए आवश्यक है।
वास्तव में, डॉ. पाल एम्स गोरखपुर और पटना के कार्यकारी निदेशक हैं और उनकी पत्नी प्रभाति पाल पुडुचेरी में प्रोफेसर हैं। इनकी संयुक्त वार्षिक आय ₹80-90 लाख से अधिक है। इससे साफ है कि उनके बच्चों को नॉन-क्रीमी लेयर का लाभ नहीं मिल सकता है।
विवाद के बाद गोपाल कृष्ण के बेटे का दाखिला रद्द हुआ
शिकायत में यह भी खुलासा हुआ कि निदेशक के बेटे ओरो प्रकाश पाल ने एक शपथपत्र के माध्यम से दावा किया था कि उनके परिवार की आय ₹8 लाख से कम है, जिसके आधार पर उन्हें प्रवेश दिया गया। हालांकि, जब उनके परिवार की वास्तविक आय का खुलासा हुआ, तो ओरो प्रकाश का प्रवेश “व्यक्तिगत कारणों” का हवाला देकर रद्द कर दिया गया।
दैनिक भास्कर की एक खबर के अनुसार, यह विवाद गोरखपुर और पटना एम्स में गहरी हलचल मचा चुका है और इसके बाद तत्काल जांच शुरू हो गई है। एम्स के मीडिया प्रभारी अरूप मोहंती ने शुरुआत में इन आरोपों को निराधार बताते हुए इसे नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन विवाद बढ़ने के बाद एम्स प्रशासन ने डॉ. पाल और उनके परिवार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर विचार करना शुरू किया।
इस मामले के व्हिसल ब्लोअर डॉ. गौरव गुप्ता ने अन्य फर्जी ओबीसी प्रमाण पत्रों से जुड़ी गड़बड़ियों की भी बात उठाई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि डॉ. पाल की धोखाधड़ी के कारण एक योग्य छात्र से ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर के तहत आरक्षित सीट छीन ली गई। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय और मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायतें दर्ज की हैं।
आरोप व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते लगाए जा रहेः गोपाल कृष्ण
इस बीच, आरोपों के जवाब में डॉ. गोपाल कृष्ण पाल ने मीडिया को बताया कि यह आरोप व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते लगाए जा रहे हैं। उनका दावा है कि डॉ. गुप्ता ने ये आरोप इसलिए लगाए हैं क्योंकि उन्हें प्रमोशन नहीं मिला और वे करियर में उन्नति के लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. गुप्ता और उनकी पत्नी पर भी गंभीर आरोप हैं, जिनकी वे जांच कर रहे थे, और यह आरोप उन पर कार्रवाई रोकने के लिए लगाए जा रहे हैं।