नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट ने बुधवार को वन नेशन-वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही सरकार ने लोकसभा, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय सरकारी निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा दिया।इससे पहले 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कोविंद समिति ने केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर एक साथ चुनाव कराने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की थी।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की मीटिंग के बाद पत्रकारों से कहा कि तमाम संशोधनों के बाद एक साथ चुनाव कराने के सिस्टम को दो चरणों में लागू किया जाएगा। इसके पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके बाद दूसरे चरण में, जो पहले चरण के 100 दिनों के भीतर होगा, उसमें स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएंगे।
विपक्षी पार्टियों के सहयोग की होगी जरूरत
एक राष्ट्र, एक चुनाव या वन नेशन वन इलेक्शन के लिए दो संविधान संशोधन विधेयकों को संसद के दोनों सदनों से पारित करना जरूरी होगा। इसके लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को विभिन्न दलों के बीच व्यापक सहमति बनाने पर काम करना होगा। अभी बीजेपी के पास लोकसभा में अपने दम पर भी बहुमत नहीं है, इसलिए राह आसान नहीं है। सरकार को को एनडीए में अपने सहयोगियों के साथ-साथ विपक्षी दलों से भी बात करनी होगी।
विपक्षी दलों से आम सहमति बनाने का एक तरीका संविधान संशोधन विधेयकों को संसदीय समिति के पास भेजना हो सकता है। ये संसदीय स्थायी समिति या संयुक्त संसदीय समिति हो सकती है। संसद की इन समितियों विपक्ष के भी सदस्य होते हैं और यहां चर्चाओं की काफी गुंजाइश है। सरकार यहां से चर्चा को आगे बढ़ाकर विपक्षी दलों को एक सहमति की ओर ले जा सकती है।
इसके अलावा केंद्र सरकरा को राज्य सरकारों तक भी पहुंचना होगा। स्थानीय निकायों के भी चुनाव एक साथ कराने को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि कुल राज्यों में से कम से कम आधे राज्य संविधान में इस संशोधन पर राजी हों। वैसे अभी भाजपा करीब एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में सत्ता में है। हालांकि हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव अगर गणित बदलते हैं स्थिति कुछ चुनौतीपूर्ण बन सकती है।
संविधान में संशोधन की होगी जरूरत
एक साथ सभी चुनाव कराने के लिए सरकार को संसद में एक संविधान संशोधन विधेयक लेकर आना होगा। एक साथ चुनाव कराने से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने लिए संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत दो शर्तों का पूरा होना अनिवार्य है।
सबसे पहले तो जरूरी है कि लोकसभा और राज्यसभा यानी दोनों सदनों के कुल सदस्य के आधे लोगों को संशोधन के पक्ष में मतदान करना होगा। दूसरी बात ये कि सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों में से दो-तिहाई को संशोधन के पक्ष में मतदान करना होगा।
इसके बाद दूसरा संविधान संशोधन विधेयक यह सुनिश्चित करेगा कि सभी स्थानीय निकाय चुनाव (नगरपालिका और पंचायत) एक साथ हुए चुनाव के 100 दिनों के भीतर कराए जाएं। इस संशोधन को पारित करने के लिए ऊपर बताए गए दो शर्तों के अलावा एक और अतिरिक्त शर्त भी पूरी करनी होगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि सातवीं अनुसूची के अनुसार ‘स्थानीय सरकार’ का विषय राज्य सरकार के तहत आता है। इसका मतलब ये हुआ कि इस विषय पर केवल राज्यों के पास कानून पारित करने के अधिकार हैं। ऐसे में स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन को लेकर अनुच्छेद 368 में कहा गया है- ‘ऐसे राज्यों वाले विषयों से जुड़े संशोधन को लागू करने के लिए देश में कम से कम आधे राज्यों की विधान सभा की भी सहमति जरूरी है।’
कार्यकाल पूरा करने से पहले ही सरकार गिर गई तो?
कोविंद कमिटी ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि अगर किसी राज्य की विधान सभा में या फिर लोक सभा पांच साल कार्यकाल पूरा किए बिना ही बीच में भंग हो जाती है तो मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि नई चुनी गई सरकार (विधान सभा या लोक सभा) केवल बचे हुए कार्यकाल के लिए काम करेगी और फिर पहले से चले आ रहे तय समय पर ही पूरे देश में दोबारा चुनाव कराए जाएंगे। मध्यावधि चुनाव और एक साथ कराए जाने वाले निर्धारित चुनाव के बीच की अवधि को ‘अनएक्सपायर्ड टर्म’ कहा जाएगा।
कैसे लागू होगा एक साथ चुनाव कराने का सिस्टम
कोविंद समिति ने सिफारिश की थी कि भारत के राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक में एक अधिसूचना जारी कर अनुच्छेद के प्रावधान को लागू करने का ऐलान कर सकते हैं। नोटिफिकेशन जिस दिन जारी होगा, उसे निर्धारित तिथि (Appointed Date) कहा जाएगा। इस निर्धारित तिथि के बाद चुनी गई किसी भी राज्य विधानसभा को लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही भंग कर दिया जाएगा।
ऐसे में एक साथ चुनाव कराने के लिए कुछ राज्य विधान सभाओं को उनके निर्धारित पांच साल के कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही भंग करना होगा। उदाहरण के तौर पर बिहार विधानसभा का चुनाव अक्टूबर या नवंबर 2025 में होना है और नई सरकार का कार्यकाल 2030 तक होना चाहिए। हालांकि, एक राष्ट्र एक चुनाव के लागू होने पर नई विधानसभा एक साल पहले ही यानी 2029 में ही भंग हो जाएगी और लोकसभा चुनाव के साथ बिहार विधानसभा के भी चुनाव कराए जा सकते हैं।
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