क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल में बैठकर ही वो सारे काम कर सकते हैं, जिसे एक मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें करना होता है। अगर कर सकते हैं तो उस काम में बाधा कौन है।
फिर जब सुप्रीम कोर्ट ही ये कह चुका है कि बेल नियम है, जेल अपवाद है तो इसी सिद्धांत का पालन करते हुए केजरीवाल को जमानत क्यों नहीं मिल रही है। आखिर जेल में बंद एक मुख्यमंत्री अपनी ड्यूटी, अपने फर्ज के प्रति ईमानदारी कैसे दिखा सकता है। अपने कर्तव्य का निर्वाह कैसे कर सकता है। ये सारे संवैधानिक सवाल हैं। ये सवाल किसी एक व्यक्ति के नहीं हैं।
ये सवाल दिल्ली के दो करोड़ जनता के हितों से जुड़े हैं। आखिर दिल्ली कब तक इस बदनसीबी में जीती रहेगी कि उसका मुख्यमंत्री जेल में रहेगा और वो अपनी सुविधाओं और उन अधिकारों के लिए भटकती रहेगी, जिसका निवारण मुख्यमंत्री की कलम ही कर सकती है।