नई दिल्लीः एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2019 तक नौ साल तक चली जांच में सरकारी नौकरियां हासिल करने के लिए फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के इस्तेमाल की 1084 शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें से 92 कर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
आरटीआई एक्ट के तहत इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2019 तक नौ सालों की जांच में सरकारी नौकरियों के लिए फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर 1,084 शिकायतें दर्ज की गईं। इन मामलों में से 92 कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त किया गया। रिपोर्ट में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के रिकॉर्ड्स का हवाला दिया गया है
गौरतलब है कि इस साल पूजा खेडकर का हाई-प्रोफाइल मामला इन आंकड़ों को और महत्वपूर्ण बनाता है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने सिविल सेवा में जगह पाने के लिए फर्जी जाति और विकलांगता प्रमाणपत्र पेश किए थे।
सूचना में सरकार के 93 मंत्रालयों और विभागों में से 59 का डेटा शामिल
यह जानकारी आरटीआई एक्ट के तहत प्राप्त की गई, जिसमें सरकार के 93 मंत्रालयों और विभागों में से 59 का डेटा शामिल था। इन रिकॉर्ड्स के अनुसार, सबसे ज्यादा फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के मामले रेलवे में पाए गए, जहां 349 शिकायतें दर्ज की गईं। इसके बाद डाक विभाग में 259, जहाजरानी मंत्रालय में 202, और खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग में 138 ऐसे मामले दर्ज हुए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के अनुसार, कई मामले अभी भी अलग-अलग अदालतों में लंबित हैं।
सरकार ने कब फर्जी जाति प्रमाणपत्र से जुड़ी शिकायतों का डेटा इकट्ठा करना शुरू किया?
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र से जुड़ी शिकायतों का डेटा इकट्ठा करना शुरू किया था, जब तत्कालीन लोकसभा बीजेपी सांसद रतिलाल कालिदास वर्मा की अध्यक्षता वाली अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति ने इसकी सिफारिश की थी।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने 28 जनवरी 2010 को इस संबंध में पहली बार सभी मंत्रालयों को पत्र भेजा था, जिसमें उनसे कहा गया था कि वे अपने अधीनस्थ संगठनों से जानकारी एकत्र करें कि किन मामलों में उम्मीदवारों ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षित पदों पर नियुक्ति प्राप्त की या आरोपित हुए।
2019 के बाद का कोई डेटा उपलब्ध नहीं
इस सिफारिश के आधार पर आखिरी बार डेटा 16 मई 2019 को मांगा गया था। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के बाद का कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने आरटीआई के जवाब में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि विभाग ने समय-समय पर सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को जाति प्रमाणपत्र के समय पर सत्यापन को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। जाति प्रमाणपत्र जारी करना और उसका सत्यापन करना संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की जिम्मेदारी है।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के 1993 के आदेश के अनुसार, यदि कोई सरकारी कर्मचारी फर्जी जानकारी या प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हासिल करता है, तो उसे सेवा में नहीं रखा जाएगा।