कीव: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड के बाद यूक्रेन के दौरे पर हैं। वे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से भी मुलाकात कर रहे हैं। सोवियत संघ के विघटन और 1992 में यूक्रेन से कूटनीतिक रिश्ते स्थापित होने के बाद यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री यूक्रेन पहुंचा है। पीएम मोदी का यह यूक्रेन दौरान ऐसे समय में हो रहा है जब वह रूस के साथ जंग में है।
इससे पहले पीएम मोदी ने 6 जुलाई को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी। इस मुलाकात की तब जेलेंस्की ने खुल कर आलोचना की थी। रूस के साथ भारत के रिश्ते हमेशा से बेहद करीब रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि पीएम मोदी यूक्रेन के दौरे पर क्यों गए हैं? क्या ये भारत की विदेश नीति में किसी तरह के बदलाव का संकेत है? रूस इसे किस नजर से देखेगा और क्या पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे का असर भारत-रूस संबंध पर भी पड़ेगा?
भारत की विदेश नीति बदल रही है?
पीएम मोदी का यूक्रेन और पोलैंड का दौरा निश्चित रूप से भारत की पारंपरिक विदेश नीति से हटकर है। शीत युद्ध के दौरान भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर था। यूक्रेन 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद अस्तित्व में आया। इसके बाद भारत का रूस की ओर झुकाव तो रहा लेकिन यूक्रेन के साथ बहुत करीबी रिश्ते स्थापित नहीं हुए।
पोलैंड के साथ भी कहानी कुछ ऐसी ही रही है। शीत युद्ध के दौरान, जब पोलैंड वारसॉ पैक्ट का सदस्य था, तब तीन भारतीय प्रधानमंत्रियों ने इसका का दौरा किया। 1955 में जवाहरलाल नेहरू, 1967 में इंदिरा गांधी और 1979 में मोरारजी देसाई पोलैंड गए। वारसॉ संधि के खत्म होने और पोलैंड के सोवियत काल के बाद रूस से दूर और पश्चिम के करीब होने से भारत की भी इससे दूरी बढ़ गई।
पोलैंड और यूक्रेन दोनों यूरोप के लिए आज महत्वपूर्ण देश हैं। हालांकि रूस के प्रति भारत के विशेष संबंध ने संभवतः नई दिल्ली को मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ अपने रिश्तों को पूरी तरह से आगे बढ़ाने से रोका। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी का वर्तमान दौरा नए बदलाव का प्रतीक है।
PM Narendra Modi and Ukrainian President Volodymyr Zelenskyy at Exposition ‘Martyrologist’, in Kyiv pic.twitter.com/Qyf51Eecd3
— ANI (@ANI) August 23, 2024
हाल में पीएम मोदी ने भी पोलैंड में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए इस बदलाव का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘दशकों से भारत की नीति सभी देशों से समान दूरी बनाए रखने की रही है। आज स्थिति बदल गई है…आज के भारत की नीति है सभी देशों से समान रूप से नजदीकी बनाओ। आज का भारत सभी के साथ जुड़ना चाहता है। सबके विकास की बात करता है। हमें गर्व है आज दुनिया भारत को विश्वबंधु का भाव दे रही है, जिन्हें कहीं जगह नहीं मिली, उन्हें भारत ने अपने दिल और जमीन में स्थान दिया है।’
यूक्रेन दौरे का रूस से संबंध पर पड़ेगा असर?
रूस और भारत के बीच संबंधों पर यूक्रेन के दौरे से असर पड़ेगा, इसका कोई ठोस कारण नहीं नजर आता। जानकार मानते हैं कि भारत-रूस संबंध किसी भी तरह से यूक्रेन के साथ भारत के जुड़ाव से जुड़े नहीं हैं। भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसके पास अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अपने दम पर आगे बढ़ने की क्षमता पहले से कहीं अधिक है।
वैसे भी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति इस तरह काम नहीं करती कि एक देश से थोड़े करीब रिश्ते दूसरे देश से आपका समीकरण पूरा बिगाड़ दें। उदाहरण के लिए रूस और भारत एक मजबूत दोस्त रहे हैं। भारत आज पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार कर रूस की अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाव वह तमाम प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल खरीद रहा है, रूसी सैन्य हार्डवेयर का उपयोग जारी रखे हुए हैं। हालांकि, भारत इन सबके बावजूद रूस को चीन के साथ रिश्ते बढ़ाने से नहीं रोकता है, जो भारत का एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी है। यही नहीं, रूस ऐसे ही भारत के दुश्मन पाकिस्तान को भी हथियार आदि बेच रहा है।
कुल मिलाकर आखिर में दो देशों के आपसी हित अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सबसे जरूरी हो जाते हैं। चूंकि चीन और पाकिस्तान के साथ रूस के जुड़ाव से भी भारत के उसके साथ संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है, इसलिए यह मानना चाहिए कि यूक्रेन के साथ जुड़ाव से भी रूस के साथ भारत के समीकरण नहीं बदलेंगे।
इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत अगर शांतिदूत की भूमिका निभाना चाहता है तो भी पीएम मोदी का दौरा अहम है। मोदी वारसॉ में गुरुवार को कह चुके हैं कि भारत ‘शांति और स्थिरता की शीघ्र बहाली के लिए बातचीत और कूटनीति’ का समर्थन करता है और इसके लिए ‘हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।’