कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी संभवत: अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक का सामना इन दिनों कर रही हैं। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और फिर निर्ममता से उसकी हत्या हुई। इस घटना के बाद राज्य सरकार ने जिस तरीके से पूरे मामले को संभालने की कोशिश की, उसने कई और सवाल खड़े कर दिए। पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। राज्य में विपक्षी पार्टियां ममता सरकार पर हमलावर हैं।
इस बीच तृणमूल कांग्रेस के अंदर से ही ऐसे बयान सामने आने लगे हैं जो ममता बनर्जी के लिए मुश्किल का सबब बन रहे हैं। इसमें कुछ नेताओं के बयान तो घटना पर पार्टी लाइन से हटकर हैं तो कुछ नेता पार्टी और ममता को लेकर वफादारी साबित करने के लिए विवादित बयान देने से भी पीछे नहीं हटे। अस्पताल में रेप और हत्या की घटना के बाद सरकार के उठाए कदम भी ऐसे-ऐसे हैं जो उसकी मंशा पर सवाल खड़ कर रहे हैं।
तृणमूल नेता भी उठा रहे सवाल
टीएमसी के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर राय 14 अगस्त को विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए और कहा, ‘लाखों बंगाली परिवारों की तरह मेरी भी एक बेटी और पोती है।’ राय ने साथ ही कोलकाता पुलिस और आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे संदीप घोष के कामकाज पर सवाल उठाए।
राय ने कहा कि घोष और कोलकाता पुलिस कमिश्नर से भी पूछताछ होनी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि ‘किसने और क्यों आत्महत्या की कहानी’ फैलाई। उन्होंने ये भी सवाल खड़ा किया कि क्राइम वाले स्थान के पास निर्माण कार्य क्यों चलता रहा और स्नीफर डॉग देर से क्यों लाए गए।
बाद में सुखेंदु राय ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी पत्र लिखा और ऐसे मामलों से जल्द से जल्द निपटने के लिए हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की भी मांग रख दी। बाद में राय को कोलकाता पुलिस ने ‘गलत सूचना’ फैलाने के आरोप में रविवार और सोमवार को पूछताछ के लिए बुलाया। हालांकि राय पुलिस के पास नहीं गए और गिरफ्तारी की आशंका जताते हुए उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
सुखेंदु शेखर राय अकेले नहीं
ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस जब मुश्किलों में है तो पार्टी लाइन से अलग जाकर बात करने वाले सुखेंदु शेखर राय अकेले नहीं हैं। टीएमसी के पूर्व राज्यसभा सांसद शांतनु सेन ने कहा है कि हालांकि वह ‘टीएमसी के एक वफादार सिपाही’ बने हुए हैं, लेकिन ‘कुछ लोग मुख्यमंत्री को गलत सलाह दे रहे हैं।’
इसे नौकरशाहों के अलावा पार्टी के कुछ नेताओं पर कटाक्ष के तौर पर देखा गया। सेन की बात दोहराते हुए, अनुभवी टीएमसी नेता सोवन्देब चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘ऐसी स्थिति बनाई गई है। मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री को मामले की ठीक से जानकारी नहीं दी गई।’
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार टीएमसी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘प्रशासन को पहले ही दिन मामला सीबीआई को भेज देना चाहिए था। इससे हमारी सरकार और सीएम की छवि खराब हुई है।’ नेता ने कहा कि यदि चीजें नहीं संभली तो ये घटनाक्रम टीएमसी के महिला वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है। नेता ने कहा, ‘मुसलमानों के अलावा ममता बनर्जी का मुख्य वोट बैंक उनके सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों की वजह से महिलाएं भी हैं।’
रेप-हत्या की घटना और फिर ममता का ‘एक्शन’
जूनियर डॉक्टर की रेप और हत्या की घटना के बाद से ही ममता सरकार सवालों के घेरे में है। ममता बनर्जी ने घटना को लेकर शुरू हुए प्रदर्शन के बाद कहा था कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और मामले को जल्द अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। हालांकि, वे जमीन पर उतरते नजर नहीं आए। ममता ने मारी गई डॉक्टर के परिवार से मिलने में देरी की। इसके बाद मेडिकल छात्रों और डॉक्टरों की नाराजगी को देखते हुए आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल संदीप घोष का तबादला किया गया लेकिन तत्काल उन्हें कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का प्रिंसिपल बना दिया गया।
यह सबकुछ तब हुआ जब घटना को लेकर अस्पताल प्रशासन की लापरवाही सामने आने लगी थी। अस्पताल प्रशासन ने घटना के बाद शुरुआती कई घंटे तक मारी गई जूनियर डॉक्टर के माता-पिता को अंधेरे में रखा। आत्महत्या की कहानी उछाली गई। ऐसे आरोप हैं कि घोष सहित अस्पताल के बड़े अधिकारियों ने शुरू में मामले को आत्महत्या का एंगल देने की कोशिश की।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने बाद में अस्पताल प्रशासन की खिंचाई करते हुए पूछा कि क्यों उसने आगे आकर पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया। घोष की नई नियुक्ति पर अदालत ने रोक लगा दी। यह सब चल ही रहा था कि 14 अगस्त को एक भीड़ आरजी कर अस्पताल के भीतर दाखिल हो गई और जमकर तोड़फोड़ की गई। आरोप लगे कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही। ये बात भी सामने आई कि इस भीड़ में कई टीएमसी कार्यकर्ता भी शामिल थे। सबूत मिटाने के आरोप लगे। इसके उलट ममता ने इस घटना के लिए सीपीआई (एम) और भाजपा को जिम्मेदार ठहराया लेकिन बात कई लोगों के गले नहीं उतरी।
इस बीच राज्य सरकार ने 42 डॉक्टरों का तबादला भी करने का आदेश जारी कर दिया, जिसे उसे बाद में वापस लेना पड़ा क्योंकि ममता सरकार पर आरोप लगे कि वो प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों पर कार्रवाई के तहत ऐसा कर रही है। ममता बनर्जी का विरोध के तौर पर सड़क पर उतरना भी ‘राजनीतिक स्टंट’ जैसा नजर आया क्योंकि उन्हीं के पास स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय भी है।
रेप-हत्या की घटना पर टीएमसी नेताओं के विवादित बयान
अस्पताल में डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के मामले से पहले पहले ही ममता सरकार कई मोर्चों पर बैकफुट पर है। भ्रष्टाचार के कई मामले टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं पर हैं। इसके अलावा 2018 और 2023 के पंचायत चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा, केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारियों साथ धक्का-मुक्की, राजभवन के साथ लगातार टकराव जैसी बातें भी सुर्खियों में रही।
इस बीच ताजा घटना पर ममता का समर्थन करने वालों में टीएमसी नेताओं के विवादित बयान भी अब सुर्खियों में है। इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। मसलन टीएमसी नेता उदयन गुहा ने हाल कहा, ‘जो लोग सीएम ममता बनर्जी पर उंगली उठा रहे हैं, हम उनकी उंगलियां तोड़ देंगे।’
ऐसे ही टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी का बयान सामने आया। उन्होंने, ‘कुछ लोग सोचते हैं कि बांग्लादेश की तरह, पश्चिम बंगाल में भी कुछ लोग गाएंगे और ममता बनर्जी सरकार गिर जाएगी। यह यहां संभव नहीं है। तृणमूल उन कलाकारों का बहिष्कार करेगी जो अब गा रहे हैं। फिर वे क्या करेंगे?’