क्या बांग्लादेश से शेख हसीना का देशनिकाला और एक अंतरिम सरकार का गठन उस देश में तानाशाही के आगमन की आहट है। क्या आरक्षण का विवाद महज बहाना था, असल में कुछ विदेशी साजिशों के जरिए शेख हसीना को सत्ता से हटाना था।
आज भले बांग्लादेश में खुशियों का महासमुद्र लहरा रहा है लेकिन आम लोगों को पता नहीं है कि सेना ने अपने सैनिक बूटों के नीचे लोकतंत्र को कुचलने की तैयारी कर ली है। शेख हसीना के बाद जिस तरह आमलोगों के नाम पर सेना ने सत्ता पर काबिज होने की कोशिश की है, उससे तानाशाही की आहट सुनाई पड़ रही है।
इसमें कोई शक नहीं कि शेख हसीना ने अपने राजनीतिक शक्तियों का दुरुपयोग किया। ये कोई लोकतांत्रिक रास्ता नहीं है कि विपक्ष के नेताओं को जेल में ठूस दो। खालिदा जिया, जो बंगाल नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख हैं और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं, वो 6 साल से जेल में थीं।
बांग्लादेश में गरीबों के लिए बैंक खोलकर आम लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का फॉर्मूला देने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस पर इसी साल की शुरुआत में करीब सौ मुकदमे ठोंक दिए गए।
ये सब बताने के लिए काफी है कि शेख हसीना को लोकतंत्र को सीमित करने की जगह उसको विस्तार देना था। ऐसा उन्होंने नहीं किया। लेकिन जवाब में जिस तरह जनाक्रोश के साथ सेना ने अपनी ताकत को मिला दिया तो एक शंका, एक रहस्य पैदा करती है।