नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान लेने वाले राजनीतिक दलों और उन्हें पैसे देने वाले कॉर्पोरेट घरानों के बीच कथित सांठगांठ जैसे आरोपों की एसआईटी जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। इलेक्टोरल बॉन्ड का सिस्टम पहले ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद खत्म हो चुका है। कोर्ट ने 15 फरवरी को अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था।
चीफ जस्टिस (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि एक सेवानिवृत्त जज के तहत जांच का आदेश देना ‘अनुचित’ और ‘प्रीमेच्योर’ होगा। कोर्ट ने कहा कि सामान्य कानून के तहत अन्य उपाय हैं।
दरअसल, दो गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच ‘स्पष्ट लेन-देन’ का आरोप लगाया गया था। याचिका में चुनावी बॉन्ड योजना को ‘घोटाला’ करार दिया गया, जिसके तहत अधिकारियों को ‘शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों को दान दिया था।
याचिका में क्या आरोप लगाए गए थे?
मामले सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने चुनावी बांड की खरीद की एसआईटी जांच के पक्ष में दलील दी। भूषण ने कहा, ‘प्रारंभिक जांच हो सकती है और उनके सुझाव के अनुसार लगातार जांच की आवश्यकता हो सकती है। यह अदालत जांच की निगरानी के लिए इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त कर सकती है।’
Supreme Court declines petitions seeking a probe by a Special Investigation Team (SIT) into the alleged instances of quid pro quo arrangements between corporates and political parties through Electoral Bonds donations.
In February, the Supreme Court had struck down the Electoral… pic.twitter.com/0bnAC6TwIE
— ANI (@ANI) August 2, 2024
दायर की गई याचिका में कहा गया कि चुनावी बॉन्ड घोटाले में 2जी घोटाले या कोयला घोटाले के विपरीत धन का लेन-देन होता है, जहां स्पेक्ट्रम और कोयला खनन पट्टों का आवंटन मनमाने ढंग से किया गया था, लेकिन धन के लेन-देन का कोई सबूत नहीं था। फिर भी इस अदालत ने उन दोनों मामलों में अदालत की निगरानी में जांच का आदेश दिया, विशेष सरकारी अभियोजकों को नियुक्त किया और उन मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतें बनाईं।
चुनावी बॉन्ड 2018 में पेश किए गए थे और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किए गए थे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि एजेंसियों द्वारा जांच के दायरे में आने वाली कई फर्मों ने संभावित रूप से जांच के परिणाम को प्रभावित करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ी रकम दान की है।
सुप्रीम कोर्ट ने बताया था असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए रद्द कर दिया था। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड योजना ‘अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।’ कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाई हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है।
(IANS इनपुट के साथ)