लखनऊ: यूपी की राजनीति में कभी सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में जाने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के गांव टाड़ा में उनकी प्रतिमा लगाने के लिए बनाए चबूतरे पर बुलडोजर चल गया है। टाड़ा गांव गोरखपुर के बढ़हलगंज में है। इसी आने वाले 5 अगस्त को उनके दिवंगत होने के बाद पहली जयंती मनाने की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। चबूतरा बनकर लगभग तैयार था और मूर्ति लगनी थी। हालांकि, इससे पहले ही पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के लिए बने चबूतरे पर प्रशासन का बुलडोजर चल गया। अब यूपी की राजनीति इस मुद्दे पर गर्म है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव सहित शिवपाल यादव ने इस मुद्दे पर उठाया। इन सबके बीच दूसरी ओर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी इस मुद्दे पर बयान देते हुए मीडिया से कह दिया कि ‘ये गोरखपुर वाले जानें। यह सरकार का मामला नहीं है।’ डिप्टी सीएम का यह बयान तब आया है जब लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से यूपी बीजेपी के अंदरखाने क्या चल रहा है, इसे लेकर पहले से ही कई तरह की अटकलों का बाजार गर्म है।
ये गोरखपुर वाले जानें…#HariShankarTiwari की प्रतिमा के लिए चूबतरा तोड़ने पर बोले केशव प्रसाद मौर्य pic.twitter.com/LB2fqpdPR9
— Atal Tv (@AtalTv_UP) August 1, 2024
योगी आदित्यनाथ सरकार पर वैसे भी ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं। उस पर से यह कार्रवाई क्या ब्राह्मणों को भाजपा से नाराज होने की एक बड़ी वजह दे देगी? यह सवाल भी उठ रहे हैं। यह सबकुछ उस समय हो रहा है, जब लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और अगले तीन साल में यहां विधानसभा चुनाव भी होने हैं।
अखिलेश और शिवपाल क्या बोले?
हरिशंकर तिवारी की मूर्ति लगाने के लिए बनाए गए चबूतरे को गिराने पर अखिलेश ने ट्वीट किया, अब तक भाजपा का बुलडोजर दुकान-मकान पर चलता था, लेकिन अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लगा है। चिल्लूपार के सात बार विधायक रहे यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. श्री हरिशंकर तिवारी जी की जयंती पर उनकी प्रतिमा के प्रस्तावित स्थापना स्थल को भाजपा सरकार द्वारा तुड़वा देना, बेहद आपत्तिजनक कृत्य है। प्रतिमा स्थापना स्थल का तत्काल पुनर्निर्माण हो, जिससे जयंती दिवस 5 अगस्त को प्रतिमा की ससम्मान स्थापना हो सके।’
अब तक भाजपा का बुलडोज़र दुकान-मकान पर चलता था, अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लगा है।
चिल्लूपार के सात बार विधायक रहे उप्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. श्री हरिशंकर तिवारी जी की जयंती पर उनकी प्रतिमा के प्रस्तावित स्थापना स्थल को भाजपा सरकार द्वारा तुड़वा देना, बेहद… pic.twitter.com/quV9bE372b
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वहीं, शिवपाल यादव ने यूपी विधानसभा में कहा कि हरिशंकर तिवारी हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में समाजवादी पार्टी जांच की मांग करती है। हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी ने भी फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए चबूतरा तोड़े जाने पर विरोध जताया। हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटे विनय शंकर तिवारी और पूर्व सांसद भीष्म शंकर तिवारी सपा में हैं। जाहिर है पूरे मामले में राजनीति की भूमिका अहम नजर आ रही है।
यूपी की राजनीति और हरिशंकर तिवारी
पूर्वी उत्तर प्रदेश या कह लीजिए पूर्वांचल का हिस्सा करीब दो दशक पहले जब ‘माफिया राज’ के चुंगल में था, तो उसमें एक बड़ी भूमिका हरिशंकर तिवारी की भी मानी जाती है। कहा तो ये भी जाता है कि यूपी में माफियाओं या बाहुबलियों की कहानी हरिशंकर तिवारी से ही शुरू होती है। माफियाओं के बीच उन्हें ‘बाबा’ कहा जाता था। यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी करीब 10 से 12 प्रतिशत है। ऐसे में राजनीतिक रूप से भी ब्राह्मण वोट अहम रहे हैं। सूबे में 10 से 12 जिले ऐसे हैं जहां ब्राह्मण 15 फीसदी के आसपास हैं। कुल मिलाकर वोट बैंक और माफियागिरी के कॉकटेल ने हरिशंकर तिवारी को 80 और 90 के दशक में एक बड़े ब्राह्मण नेता के तौर पर भी स्थापित कर दिया था।
हरिशंकर तिवारी 1997 से 2007 के बीच यूपी में विभिन्न मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में मंत्री भी रहे। फिर चाहे सरकार कल्याण सिंह की रही हो या फिर राजनाथ सिंह या मायावती या फिर मुलायम सिंह यादव की, हरिशंकर तिवारी को नजरअंदाज करना लगभग मुश्किल था। जेपी आंदोलन के समय गोरखपुर विश्वविद्यालय से हरिशंकर तिवारी उभरे और फिर बाहुबली के रूप में स्थापित हो गए। इसके बाद ठाकुरों के नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से उनकी अदावत और इस बीच खुद को लंबे समय तक मैदान में बनाए रखने के लिए राजनीति में उनकी एंट्री ने यूपी में बाहुबली से नेता बनने की एक नई रवायत को प्रचलित कर दिया।
वीरेंद्र प्रताप शाही से अदावत और जेल में रहते हुए चुनावी जीत
80 के दशक में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही के गुट के बीच खूब खूनी खेल चला। ये सबकुछ खत्म हुआ 1997 में जब शाही की हरिशंकर तिवारी के ही बेहद करीबी श्रीप्रकाश शुक्ल ने गोली मारकर हत्या कर दी। हरिशंकर तिवारी 1985 में पहली बार गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट से खड़े हुए और जेल में रहते हुए चुनाव जीत गए।
तिवारी जब पहली बार विधायक बने तो गोरखपुर के ही वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। गोरखपुर गैंगवार की चपेट में था और इसी बीच वीर बहादुर सिंह ने 1986 में विधानसभा में यूपी गैंगस्टर्स एक्ट पारित कराया। ऐसा माना जाता है कि यह एक्ट मुख्य रूप से तिवारी और शाही के बीच वर्चस्व की लड़ाई पर रोक लगाने के लिए था। शाही और तिवारी के बीच प्रतिद्वंद्विता को ब्राह्मण-ठाकुर जाति विभाजन से बढ़ावा मिला।
शाही की हत्या के बाद गोरखपुर में केवल दो अहम केंद्र रह गए। एक- ‘तिवारी हाता’ और दूसरा गोरखनाथ मंदिर। 2002 के चुनाव में इन दोनों केंद्रों के बीच भी राजनीति टकराव देखने को मिला। साल 2007 में पहली बार चुनाव हारने के बाद हरिशंकर तिवारी ने खुद को राजनीतिक रूप से सीमित कर लिया लेकिन अपने दोनों बेटों के लिए प्रचार करते रहे। उन्होंने 2017 तक अपने छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी के लिए भी प्रचार किया। पिछले साल यानी 2023 में हरिशंकर तिवारी की मृत्यु हो गई।