नई दिल्ली: आजाद भारत के इतिहास में 26 जुलाई का दिन बेहद अहम है। यही वो तारीख है तब 25 साल पहले 1999 में भारत के वीर जवानों ने ‘कारगिल युद्ध’ में पाकिस्तान को पटखनी दी थी। भारत इस युद्ध में जीत को हर साल ‘विजय दिवस’ के तौर पर मनाता है। कारगिल की जंग में भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम ने वो काम कर दिखाया था, जो बेहद मुश्किल था। साथ ही इस घटना ने दुनिया के सामने पाकिस्तान की कलई भी खोल कर रख दी थी कि कैसे और क्यों ये मुल्क भरोसे के लायक नहीं है। इस युद्ध में भारत के 527 जवानों को अपना बलिदान देना पड़ा।
पाकिस्तान की घुसपैठ से शुरू हुई कारगिल की जंग
ये साल 1999 का था। प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व में भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती की नई इबारत लिखी जा रही थी। ऐसा लग रहा था दशकों से चली आ रही दुश्मनी खत्म होने की राह पर है। प्रधानमंत्री वाजपेयी फरवरी-1999 में बस यात्रा कर पाकिस्तान भी गए। सबकुछ अच्छा चल रहा था लेकिन पाकिस्तान ने साबित कर दिया कि उस पर भरोसा कितनी बड़ी गलती है। पाकिस्तान एक तरफ तो दोस्ती की बात कर रहा था तो दूसरी ओर उसकी सेना भारतीय इलाकों में घुसपैठ कर रही थी।
दरअसल, कारगिल उन इलाकों में है जहां सर्दियों के मौसम में भयंकर बर्फ जम जाती है। यहां दुर्गम चोटियां हैं और तापमान सर्दियों में यहां -40 या -50 तक भी चला जाता है। ऐसे में उस दौर में भारतीय सेना इन इलाकों को खाली कर देती थी। पाकिस्तान ने इसी का फायदा उठाया और इन्हीं सर्दियों में भारतीय इलाकों में घुसपैठ की गई। इसमें पाकिस्तानी सेना और सीमापार के आतंकी दोनों शामिल थे।
गर्मियों में घुसपैठ का खुलासा…फिर 84 दिनों का संघर्ष
तीन मई, 1999, यही वो तारीख है जब भारतीय सेना को इस घुसपैठ का पता चला। गर्मियों के दिन आ गए थे और कुछ स्थानीय चरवाहों ने भारतीय सेना को इस घुसपैठ की जानकारी दी। शुरुआत में तो ऐसा लगा कि ये छोटी-मोटी घुसपैठ होगी, जो अक्सर हुआ करती थी और आज भी इसकी कोशिश होती है। हालांकि, भारतीय सेना ने जब बारीकी से इसकी जांच की थी तो सभी की चिंताएं बढ़ गई। कई महत्वपूर्ण इलाकों पर पाकिस्तानी सेना और उसके भेजे घुसपैठियों का कब्जा हो गया था।
रिकॉड्स के अनुसार घुसपैठ की जानकारी मिलने के बाद 5 मई को भारतीय सेना ने पेट्रोलिंग पार्टी उन इलाकों में भेजी। हालांकि, वहां पांच जवानों को घुसपैठियों ने मार दिया। यही नहीं, जवानों के शव के साथ बर्बरता भी की गई। घुसपैठिए लेह-श्रीनगर हाईवे पर कब्जा करना चाहते थे। उनका लक्ष्य था कि इसके जरिए वे लेह को भारत के बाकी हिस्सों से काट देंगे। पीछे से पाकिस्तानी सेना का भी सपोर्ट इन घुसपैठियों को मिल रहा था। 10 मई, 1999 को द्रास, काकसर, बटालिक सेक्टर में भी पाकिस्तानी घुसपैठियों के देखे जाने की रिपोर्ट भारतीय सेना को मिली।
भारतीय सेना ने जब दिखाया पराक्रम
भारत समझ चुका था कि बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई है। इस बीच 26 मई को भारतीय वायुसेना ने घुसपैठियों पर बमबारी शुरू की। वहीं अगले ही दिन दो लड़ाकू विमानों को पाकिस्तानी सेना ने मार गिराया। इसमें फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. नचिकेता को बटालिक सेक्टर में बम गिराने के दौरान पाकिस्तान ने युद्धबंदी बना लिया जबकि स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा ने सर्वोच्च बलिदान दिया।
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— A. Bharat Bhushan Babu (@SpokespersonMoD) July 25, 2024
जंग शुरू हो चुकी थी। पाकिस्तान कई ऊंची पहाड़ियों पर अपने सैनिक बैठा चुका था और इसलिए भारतीय सेना को काफी कठिनाई आ रही थी। इस बीच 4 जुलाई को अच्छी खबर आई जब लगातार करीब 11 घंटों की लड़ाई के बाद भारतीय सेना ने टाइगर हिल्स पर तिरंगा फहराया। इसके बाद अगले ही दिन द्रास सेक्टर पर भी भारत ने वापस कब्जा जमा लिया जो रणनीतिक तौर पर बेहद अहम था।
इसके बाद 7 जुलाई को बटालिक सेक्टर में कुछ अन्य पहाड़ियों पर भारतीय सेना ने कब्जा जमाया। अगले तीन से चार दिन में बटालिक की लगभग सभी पहाड़ियों पर भारत का फिर से कब्जा हो गया था। 14 जुलाई आते-आते भारतीय सेना ने अपने पूरे क्षेत्र से पाकिस्तान को खदेड़ दिया था। इसके बाद 26 जुलाई को भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध जीतने यानी ऑपरेशन विजय के पूरा होने की घोषणा कर दी।
18 हजार फीट की ऊंचाई पर जंग
करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़े गए कारगिल युद्ध से भारतीय सेना का पराक्रम पूरी दुनिया ने देखा। इस जंग ने ये भी साबित किया कि भारतीय सेना मुश्किल से मुश्किल हालात में भी दुश्मनों का मुकाबला कर सकती है। गौरतलब है कि कारगिल 2,676 मीटर (8,780 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। वहीं, द्रास करीब 3,300 मीटर (10,800 फीट) की ऊंचाई पर है। इसके आसपास की कुछ चोटियां करीब 4,800 मीटर (16,000 फीट) से लेकर 5,500 मीटर (18,000 फीट) की ऊंचाई तक की है। इतनी ऊंचाई किसी भी शख्स के शरीर और यहां तक कि उपकरणों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।