नई दिल्ली: खनिजों पर टैक्स वसूलने को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई हुई है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने खनिज-युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखा है।
सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्यों को खनिज वाली जमीन पर कर वसूलने का अधिकार है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि खनिजों पर ली जाने वाली रॉयल्टी, टैक्स नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने 8:1 की बहुमत से फैसला सुनाया है। हालांकि जज बीवी नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना का तर्क है कि खनिजों के मामले में राज्यों को टैक्स वसूलने नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे इन राज्यों में कॉम्पिटिशन बढ़ जाएगा।
कोर्ट के इस फैसले से ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को फायदा पहुंचेगा। अदालत का यह फैसला इन राज्यों को अपने क्षेत्रों के भीतर खनन कंपनियों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति देता है।
कोर्ट ने और क्या कहा है
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बताया कि रॉयल्टी एक कॉन्ट्रैक्चुअल पेमेंट है जो एक पट्टाधारक द्वारा पट्टादाता को दिया जाता है। मामले में केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि खनिजों पर टैक्स लगाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास ही है।
इस पर कोर्ट ने यह कहा है कि संविधान की सूची I की प्रविष्टि 50 के तहत खनिज अधिकारों पर संसद को टैक्स लगाने का अधिकार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा है कि रॉयल्टी और ऋण किराया दोनों की टैक्स के मानदंडों पर पूरा नहीं उतरते हैं।
कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआरए) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो खनिजों पर कर लगाने की राज्य की क्षमता को सीमित करता हो।
फैसले पर असहमति जताते हुए जज बीवी नागरत्ना ने कहा है कि अगर राज्य खनिजों पर टैक्स वसूलते हैं तो इससे संभावित रूप से राष्ट्रीय बाजार का शोषण हो सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इससे खनिज विकास से संबंधित संघीय प्रणाली को भी खतरा हो सकता है।
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केंद्र सरकार ने क्या तर्क दिया है
केंद्र ने तर्क दिया है कि खनिजों पर राज्यों द्वारा टैक्स वसूलने से राज्यों में महंगाई होगी और इससे एफडीआई पर भी असर पड़ेगा। इस कारण भारतीय खनिज महंगे होंगे जिससे इंटरनेशनल मार्केट में कॉंम्पटिशन घटेगा।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि केंद्र द्वारा निर्धारित एक सामान टैक्स दर अगर हर राज्य में लागू होता है तो यह सही होगा जो राज्यों को खनिजों पर अत्यधिक कर लगाने से रोकेगा।
केंद्र के इस तर्क पर कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान खनिज से जुड़े मामलों पर संसद को अधिकार नहीं देता है बल्कि यह अधिकार एक राज्य को दिया गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि इस अधिकार के तहत राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर खानों और खनिजों को कंट्रोल करने और उनके विकास करने की छूट दी गई है।
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1989 के फैसले को कोर्ट ने पलटा
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तीन दशक पहले सुनाए गए फैसले को बदल देता है जिसमें तमिलनाडु सरकार और इंडिया सीमेंट्स से जुड़े इस तरह के एक मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने एक फैसला सुनाया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि खनिजों पर रॉयल्टी एक टैक्स है और एमएमडीआरए के तहत केंद्र प्राथमिक प्राधिकारी है।
इस फैसले के बाद 2004 में सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाया गया था। छोटी पीठ ने 1989 के फैसले को टाइप करने या फिर लिखने में हुई एक गलती होने का दावा किया था।
पीठ ने कहा था कि फैसले का वाक्य इस तरह से होने चाहिए था- ‘रॉयल्टी एक कर है’ न की ‘रॉयल्टी पर उपकर एक कर है’ लिखा जाना चाहिए था।
कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ उस समय खनन कंपनियों, पीएसयू और कई राज्यों की ओर से 86 से भी अधिक याचिकाएं दायर की गई थी। सालों से चल रहे इस विवाद को सुलझाने के लिए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के नेतृत्व में नौ न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया गया था। ऐसे में गुरुवार को इस पर फैसला आ गया है।