नई दिल्लीः वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को बजट 2024 के दौरान 12 साल पुराने एंजेल टैक्स को खत्म कर दिया। वित्त मंत्री के इस फैसले से स्टार्टअप्स और उनके निवेशकों में खुशी की लहर दौड़ गई। आइए समझते हैं कि यह सख्त कानून कैसे आया और इसे हटाने का स्टार्टअप इकोसिस्टम पर क्या असर पड़ेगा।
एंजेल टैक्स क्या है कब हुई इसकी शुरुआत?
एंजेल टैक्स का विचार पहली बार 2012 के केंद्रीय बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा पेश किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य स्टार्टअप्स में निवेश के माध्यम से धन शोधन की प्रक्रिया पर रोक लगाना और ऐसे मामलों के बाद फर्जी कंपनियों को पकड़ना था।
एंजेल टैक्स, जिसे औपचारिक रूप से आयकर अधिनियम की धारा 56 (2) (vii b) के रूप में जाना जाता है, स्टार्टअप्स द्वारा एंजेल निवेशकों से जुटाए गए फंड पर लगाया जाने वाला टैक्स है। हालांकि, यह केवल उन फंडों पर लागू होता है जो कंपनी के उचित बाजार मूल्य से अधिक होते हैं।
उदाहरण के लिए अगर किसी कंपनी का सही मूल्य 1 करोड़ रुपये है और वह एंजेल निवेशकों से 1.5 करोड़ रुपये जुटाती है, तो अतिरिक्त 50 लाख रुपये पर यह टैक्स लगाया जाता था। वही भी करीब 31 प्रतिशत की दर से। यानी 50 लाख रुपए पर 31 प्रतिशत टैक्स देनदारी बनती थी। ऐसे में किसी स्टार्टअप्स के लिए शुरुआत में ही इतना बड़ी रकम चली जाती थी जिससे उनको बड़ा झटका लगता था।
यहां बताते चलें कि एंजेल निवेशक अलग होते हैं। ये ऐसे अमीर लोग होते हैं जो अपना पैसा शुरुआती कंपनियों या छोटे-मध्यम स्तर की कंपनियों में लगाते हैं।
एंजेल टैक्स से स्टार्टअप्स को क्या हो रही थी दिक्कत?
हाल के वर्षों में, कई स्टार्टअप्स ने एंजेल टैक्स के बारे में काफी चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि यह अनफ्रेंडली है। स्टार्टअप के उचित बाजार मूल्य का निर्धारण करना व्यावहारिक नहीं है। स्टार्टअप्स का दावा है कि आकलन अधिकारी (एओ) अक्सर इस मूल्य की गणना के लिए डिस्काउंटेड कैश फ्लो विधि का चयन करते हैं, जो कि स्टार्टअप्स की तुलना में कर अधिकारियों के पक्ष में माना जाता है।
स्टार्टअप्स का कहना था कि उन्हें 3-4 साल पहले जुटाए गए एंजेल निवेश पर टैक्स नोटिस मिले हैं। कुछ मामलों में, टैक्स और देरी से भुगतान शुल्क की कुल राशि मूल फंडिंग राशि से अधिक हो गई थी।
2019 में एंजेल टैक्स को लेकर काफी विवाद हुए थे। 2019 के केंद्रीय बजट में, सरकार ने उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT)-पंजीकृत स्टार्टअप को प्रावधान से छूट देकर एंजल टैक्स नियमों को आसान बनाया। लेकिन पता चला कि यह सभी ऐसे स्टार्टअप के लिए एक समान छूट नहीं थी। यह केवल उन लोगों पर लागू होता है जिन्हें अंतर-मंत्रालयी बोर्ड (IMB) नामक एक सरकारी निकाय द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
IMB नौकरशाहों का एक समूह है जो प्रमाणित करता है कि कोई स्टार्टअप अभिनव है और आयकर अधिनियम, 1961 के तहत लाभ प्राप्त करने के योग्य है। DPIIT के साथ अब तक पंजीकृत 84,000 स्टार्टअप में से 1 प्रतिशत से भी कम IMB-प्रमाणित हैं।
2023 से विदेशी निवेशकों पर भी यह टैक्स लागू होता था
पिछले साल तक, यह कर केवल निवासी निवेशकों द्वारा किए गए निवेश पर लगाया जाता था। हालांकि, इसे विदेशी निवेशकों से जुड़े लेन-देन पर भी लागू किया गया था।