नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों से जुड़ी कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने स्वदेश में दो परमाणु संचालित स्ट्राइक पनडुब्बियों (SSNs) के निर्माण और अमेरिका के जनरल एटॉमिक्स से 31 MQ-9B प्रीडेटर मिसाइल-फायरिंग ड्रोन की खरीद को मंजूरी दे दी। कैबिनेट कमेटी ने बुधवार को कुल 80 हजार करोड़ के रक्षा सौदे को मंजूरी दी है।
इससे भारतीय सैन्य क्षमता को बड़ा बढ़ावा मिलेगा। यह भारत के विरोधियों की क्षमता को देखते हुए भी बड़ा फैसला है।
चीन के पास पहले से ही छह शांग श्रेणी की न्यूक्लियर पावर्ड अटैक पनडुब्बियां हैं। भारत के लिए रूस से अकुला क्लास (Akula) की परमाणु हमला करने की क्षमता वाले पनडुब्बी को लेने में अभी 2028 तक की देरी हो रही है। ऐसे में मोदी सरकार ने स्वदेश में ही दो एसएसएनएस के निर्माण को मंजूरी दे दी। यह भारतीय डिजाइन पर आधारित होंगे। भारत के पास पहले से न्यूक्लियर ट्रायड के हिस्से के रूप में तीन न्यूक्लियर पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल-फायरिंग पनडुब्बियां (एसएसबीएनएस) हैं।
भारत के लिए क्यों जरूरी है परमाणु पनडुब्बी?
भारतीय नौसेना चाहती थी कि सरकार हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के विरोधियों को रोकने के लिए कम से कम दो न्यूक्लियर पावर्ड स्ट्राइक पनडुब्बियों (एएसएन) को मंजूरी दे। माना जा रहा है कि जनवरी में उन्होंने यह मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उठाया था। ऐसी पनडुब्बी काफी लंबे समय तक पानी के भीतर रह सकती है। इसके विपरीत डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को स्नोर्कल के माध्यम से अपनी बैटरी चार्ज करने के लिए दिन में कम से कम एक बार पानी की सतह पर आना पड़ता है। इससे इसकी सुरक्षा खतरे में होती है और सतह पर आने पर इन पर हवाई हमला किया जा सकता है।
वहीं, एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन से लैस डीजल पनडुब्बियां लंबे समय तक पानी के नीचे रह सकती हैं, लेकिन उन्हें फिर अपनी गति के साथ-साथ हथियार रखने की क्षमता से भी समझौता करना पड़ता है। दूसरी ओर परमाणु संचालित पनडुब्बियां न केवल लंबे समय तक पानी के भीतर रह सकती हैं बल्कि उनकी गति और हथियार रखने की क्षमता भी ज्यादा होती है।
31 प्रीडेटर मिसाइल-फायरिंग ड्रोन की भी होगी खरीद
अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने को भी मंजूरी मिली है। हेलफायर मिसाइलों, GBU-39B सटीक-निर्देशित बमों और हाई-फायर रोटरी कैनन से लैस इन 31 प्रीडेटर ड्रोन में से 16 भारतीय नौसेना को दिए जाएंगे। अन्य को भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना के बीच बांटा जाएंगा।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सौदे पर 31 अक्टूबर से पहले हस्ताक्षर हो सकते हैं, नहीं तो शुरुआती अनुबंधों और अमेरिकी मंजूरी के अनुसार कीमत पर बातचीत नए सिरे से शुरू करनी होगी।
गेम चंजर साबित होगा प्रीडेटर ड्रोन!
विशेषज्ञों के अनुसार मानवरहित प्रीडेटर ड्रोन इस क्षेत्र में एक गेम-चेंजर साबित होगा। इसमें दुश्मन से लड़ने की अद्भुत क्षमता है। इसे ज्यादा ऊंचाई सहित घातक हथियार से लैस किया जा सकता हैं। इसके अलावा प्रीडेटर ड्रोन निगरानी में भी माहिर है। इससे प्राप्त फुटेज ‘बोइंग पी 8 आई’ विमान से प्राप्त निगरानी फुटेज से बेहतर है। इसकी मदद से भारत यमन के तट पर अदन की खाड़ी से लेकर इंडोनेशिया में सुंडा जलडमरूमध्य तक की निगरानी बेहतर तरीके से कर सकेगा।
भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना भी इसका इस्तेमाल बुरी स्थिति में दुश्मन के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों और अहम टार्गेट को खत्म करने के लिए कर सकेगी। भारतीय नौसेना द्वारा इस सशस्त्र ड्रोन का उपयोग न केवल शिपिंग पर नजर रखने के लिए बल्कि हथियार या ड्रग्स ले जा रहे अवैध जहाजों को नष्ट करने के लिए भी कर सकेगी। प्रीडेटर ड्रोन चीनी जासूसी जहाजों पर भी नजर रखेगा जो लगभग पूरे साल हिंद महासागर में रहते हैं।