जयपुर: राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिजर्व (आरएनपी) में पिछले एक साल के दौरान 75 में से 25 बाघ कथित तौर पर “गायब” हो गए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के मुख्य वन्यजीव वार्डन पवन कुमार उपाध्याय ने सोमवार को यह जानकारी दी है।
यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में बाघों के कथित तौर पर “गायब” होने के आधिकारिक रिकॉर्ड सामने आई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए उपाध्याय ने लापता बाघों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया है। जांच का पहला उद्देश्य पिछले चार महीने में गायब हुए 14 बाघों का पता लगाना है।
गठित समिति बाघों के मॉनिटरिंग वाली रिपोर्ट की जांच करेगी और अगर किसी अधिकारी के लापरवाही की बात सामने आती है तो इसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।
इससे पहले भी बाघों के लापता होने की घटना सामने आ चुकी है। साल 2022 में आरएनपी से 13 बाघों के लापता होने की बात सामने आई थी जो साल 2019 और 2022 के बीच हुए थे।
आधिकारिक ऑर्डर के बारे में क्या कहा गया है
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस संबंध में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और पवन कुमार उपाध्याय द्वारा चार नवंबर को एक आधिकारिक ऑर्डर जारी किया गया था जिसमें यह कहा गया है कि टाइगर मॉनिटरिंग रिपोर्ट में आरटीआर में बाघों के गायब होने की जानकारी लंबे समय से आ रही है।
ऐसे में इस सिलसिले में आरएनपी के फील्ड डायरेक्टर को कई बार पत्र भी लिखा गया था लेकिन कोई संतोषजनक अपडेट नहीं मिलने पर और बाघों की संख्या में लगातार आ रही कमी को देखते हुए समिति का गठन किया गया है।
ऑर्डर में कहा गया है कि 14 अक्टूबर, 2024 की एक रिपोर्ट में एक साल से अधिक समय में 11 बाघों के पार्क में मौजूद होने के कोई ठोस सबूत नहीं मिली हैं। इसके साथ 14 अन्य बाघों का एक साल से कम समय में कोई जानकारी मिली है। ऐसे में हालात की गंभीरता को देखते हुए जांच के लिए समीति का गठन हुआ है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, उपाध्याय ने कहा कि हाल में बाघों के मॉनिटरिंग रिपोर्ट के आकलन में कुछ कमी की बात सामने आई है। उन्होंने कहा है कि बाघों के कैमरा ट्रैप डेटा से यह पता चलता है कि उनकी सही से रिकॉर्डिग नहीं हो पा रही है जिससे कई बाघों की पहचान नहीं हो पाई है।
जांच के लिए गठित समिति को दो महीने के भीतर अपने निष्कर्ष को सौंपेगी जिसके आधार पर आगे एक्शन लिया जाएगा।
आरएनपी के सामने क्या चुनौतियां हैं
आरएनपी को कई और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है जिसे इन बाघों के लापता होने का कारण माना जा रहा है। इन चुनौतियों में इलाके में बढ़ रही भीड़ और बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष शामिल हैं।
एक रिटायर अधिकारी ने बताया है कि मनुष्य और जानवारों के संघर्ष को कम करने के लिए इससे पहले बफर जोन वाले गांवों को खाली कर दूसरे जगहों पर शिफ्ट करने की योजना बनाई गई थी लेकिन उसकी प्रक्रिया बहुत ही धीमी है। इसके लिए 24 गांवों की पहचान हुई थी जिसमें से साल 2016 के बाद केवल दो ही गांवों को अब तक शिफ्ट किया गया है।
आरएनपी के एक मैनेजर ने रणथंभौर टाइगर रिजर्व की क्षमता पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि पार्क की क्षमता से अधिक यहां जानवार रह रहे हैं। आरएनपी में अभी बच्चे और बड़े बाघों को मिलाकर कुल 75 बाघ हैं जो इसकी क्षमता 900 वर्ग किमी से अधिक हैं।
साल 2006 से 2014 तक भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक अध्ययन में यह दावा किया गया था कि पार्क की क्षमता के अनुसार यहां पर केवल 40 बाघ ही रह सकते हैं लेकिन अभी यहां 75 बाघ हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि हर 100 वर्ग किलोमीटर में 10 से अधिक बाघ रह रहे हैं जिससे उनके बीच संघर्ष हो रहा है। इस कारण बुढ़े और कमजोर बाघ पार्क छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं और अन्य जगह तलाश कर रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि आरएनपी में अधिक बाघों के मौजूद होने के कारण इनके मनुष्य के साथ संघर्ष हो रहे हैं। आमतौर पर बाघ एक अकेली जगह में रहना पसंद करते हैं लेकिन मनुष्यों के दखल के कारण वे शांत इलाके की तलाश कर रहे हैं जहां वे सही से आराम, शिकार और बच्चों को जन्म दे सके।