पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अश्विनी कुमार चौबे ने एक बार फिर पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या की जांच को लेकर सवाल उठाए हैं। अश्विनी चौबे ने ललित नारायण मिश्रा की 1975 में हुई हत्या की अदालत की निगरानी में नए सिरे से जाँच की माँग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
चौबे ने इसमें राजनीतिक साजिश और अधूरी सीबीआई जाँच का आरोप लगाते हुए कहा है कि मिश्रा की मौत एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा थी, ताकि उस दौर की इंदिरा गांधी सरकार के लिए चुनौती बन रहे एक प्रभावशाली जननेता को रास्ते से हटाया जा सके। उन्होंने यह भी दावा किया कि मिश्रा जयप्रकाश नारायण आंदोलन (जेपी आंदोलन) में शामिल होने वाले थे और उनकी मुलाकात जेपी से हो भी चुकी थी, लेकिन उससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई।
कौन थे ललित नारायण मिश्रा?
तीन बार लोकसभा सांसद और दो बार राज्यसभा सदस्य रहे एलएन मिश्रा ने अपना राजनीतिक करियर पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय शुरू किया था। उन्होंने श्रम, योजना, गृह और वित्त मंत्रालयों में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया और 5 फरवरी 1973 को उन्हें रेल मंत्री नियुक्त किया गया। वे उस समय इंदिरा गांधी कैबिनेट के सबसे प्रभावशाली पांच मंत्रियों में से एक माने जाते थे।
2 जनवरी 1975 को मिश्रा समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे थे, जहां उन्हें समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्रॉडगेज लाइन का उद्घाटन करना था। भाषण खत्म करने के बाद जैसे ही वे मंच से उतरने लगे, उन पर ग्रेनेड फेंके गए। विस्फोट में मिश्रा गंभीर रूप से घायल हो गए और अगले दिन उनका निधन हो गया। इस घटना में एमएलसी सूर्य नारायण झा और रेलवे क्लर्क राम किशोर प्रसाद की भी मौत हुई थी।
मामले की जांच शुरू में रेलवे पुलिस ने की, लेकिन 10 जनवरी 1975 को सीबीआई ने इसे अपने हाथ में ले लिया।
सीबीआई ने चार लोगों को गिरफ्तार किया और हत्या का आरोप आनंदमार्ग संगठन के अनुयायियों पर लगाया। हत्या के बाद आनंदमार्ग संगठन पर दो साल के लिए प्रतिबंध भी लगा दिया गया।
हालांकि मिश्रा के पोते और सुप्रीम कोर्ट के वकील वैभव मिश्रा ने कहा था कि आनंदमार्गियों का इस हत्या से कोई संबंध नहीं था। सीबीआई की जांच शुरू से ही अस्पष्ट रही। पहले गिरफ्तार किए गए दो आरोपियों पर बाद में हत्या के आरोप हटा दिए गए। इस हत्याकांड में बिहार पुलिस के तत्कालीन डीआईजी शशि भूषण सहाय ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जबकि अगले वर्ष जस्टिस वीएम तारकुंडे ने भी अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की। दोनों रिपोर्टों ने इस हत्या के पीछे गहरी साजिश की ओर इशारा किया। इसके अलावा 1979 में पत्रकार अरुण शौरी ने इंडियन एक्सप्रेस में अपने शोध पर आधारित किताब ‘हू किल्ड एलएन मिश्रा?’ में हत्या से जुड़े राजनीतिक और प्रशासनिक पहलुओं को विस्तार से उजागर किया गया।
वैभव मिश्रा पिछले कई वर्षों से इस मामले की दोबारा जांच की मांग कर रहे हैं। उन्होंने इसको लेकर जुलाई 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी दाखिल की थी। सीबीआई ने इसके जवाब में कहा था कि जब तक हाई कोर्ट में अपील लंबित है, कानूनी रूप से दुबारा जांच संभव नहीं। इसके बाद मार्च 2022 में हाई कोर्ट ने उन्हें अभियोजन पक्ष की सहायता की अनुमति दी। मिश्रा ने एकत्रित सबूत सीबीआई को सौंपे। जनवरी 2023 में उन्होंने दोबारा निष्पक्ष जांच की मांग की और अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अनुमति दी कि वे हाई कोर्ट में अंतिम सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की सहायता कर सकते हैं।
इसी दौरान आनंद मार्गी समूह से जुड़े चार दोषी संतोषानंद, सुदेवानंद, गोपालजी और अधिवक्ता रंजन द्विवेदी ने अपनी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ अपील दायर की। दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर 2014 में चारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
ट्रायल कोर्ट ने माना था कि यह आतंकी कृत्य तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से किया गया था ताकि समूह के जेल में बंद प्रमुख को रिहा किया जा सके। वैभव मिश्र को भी अपील की अंतिम सुनवाई के दौरान सीबीआई की सहायता करने की अनुमति दी गई है। ट्रायल कोर्ट ने बिहार सरकार को मिश्र और अन्य दो पीड़ितों के कानूनी वारिसों को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था।

नई जांच की मांग उठाते हुए अश्विनी चौबे ने क्या तर्क दिया?
अपनी याचिका में चौबे ने 1978 की बिहार सीआईडी रिपोर्ट, 1979 की वीएम तारकुंडे रिपोर्ट और इंडियन एक्सप्रेस की जांच रिपोर्ट का हवाला दिया है। उनका कहना है कि इन रिपोर्टों में स्पष्ट रूप से बताया गया था कि सीबीआई ने असल आरोपियों से ध्यान हटाने के लिए आनंद मार्ग के सदस्यों को बलि का बकरा बनाया।
सीआईडी रिपोर्ट में कहा गया था कि मिश्रा की हत्या के लिए दिल्ली की सत्ता के करीब बैठे लोगों को बचाने के लिए सीबीआई ने जांच की दिशा बदल दी थी। वहीं इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य रामबिलास झा का नाम उछला था और आरोप लगाया गया था कि सीबीआई की जांच जानबूझकर रोकी गई, शायद इंदिरा गांधी के निर्देश पर।
पहले की थी एसआईटी जांच की मांग
गौरतलब है कि पांच महीने पहले अश्विनी चौबे ने केंद्र सरकार से इस मामले की एसआईटी से जांच कराने की मांग की थी। मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे से पहले चौबे ने यह मांग उठाते हुए कहा था कि “जब 1984 के दंगों की फाइलें फिर से खोली जा सकती हैं, तो एलएन मिश्रा केस की जांच क्यों नहीं हो सकती? वे बिहार के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। उनकी हत्या के बाद जनता में इतना आक्रोश था कि कांग्रेस को उनके भाई जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा।”
अदालत ने दी चेतावनी
सोमवार को न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ के सामने जब यह याचिका सुनवाई के लिए आई, तो अदालत ने भाजपा सांसद से पूछा कि अब पांच दशक बाद वे क्यों अदालत में आए हैं। पीठ ने कहा, “अगर हम इसे खारिज करते हैं, तो यह एक उदाहरण पेश करने वाले जुर्माने के साथ होगा। आप ऐसे थोड़ी न कर सकते हैं कि 50 साल बाद कोई आवेदन लगा दे और बोले इसमें दोबारा जांच होनी चाहिए।”
हाई कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को करेगा।

